sanskritam: श्रिणोतु
श्रिणोतु
श्रिणोतुयदारोपितं
पुरा
बीजरुपेण
सर्वं खलु तत्
सघनं वनं जातं
विकिरन्ति पुष्पाणि
इतस्ततः
आकारयामि त्वां
बन्धो ! चिनोतु ;
हृद सुमं
कंठहाराय
भ्रूलतं स्पृशन्
अपांगात् प्रसरति
नहि नहि प्रवहति
नदीनदै: सह आसमुद्रम्
अश्रुधारा
आकारयामि त्वाम्
बन्धो !वृणोतु
इयं महाप्रयाणवेला
नातिक्रमणीया
महाभिनिष्क्रमणाय
आकारयामि त्वाम्
बन्धो !श्रिणोतु
नहि कश्चित् श्रिणोति माम्|
डॉ. विवेक पाण्डेय
namaste sir,
जवाब देंहटाएंas i saw tht u r a genius sanskrit scholar. isliye muje aapse sanskrit ke kuch shlok ke baare main jaankari prapt karni hai.
asha karti hoon aap nirash nahi karege...
mera id hai priya007x@rediffmail.com